कुछ लोग यह मान रहे हैं कि भारत श्रीलंका जैसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है। क्या वास्तव में ऐसा हो सकता है?
आइये इसे समझते हैं।
अगर वर्तमान समय की बात की जाए तो श्री लंका की स्थिति चिंताजनक है वहां उत्पन्न आर्थिक संकट अब राजनीतिक संकट एवं गृह युद्ध की ओर बढ़ चुका है। भारत समेत कई विदेशी संगठन श्रीलंका की मदद कर रहे है। परंतु इस आर्थिक संकट से उबरने में श्रीलंका को काफी समय लगेगा।
किस तरह की संकट का सामना श्री लंका अभी कर रहा है?
श्रीलंका के पास विदेशी मुद्रा भंडार काफी कम हो चुका है जिसके कारण वह अपनी जरूरत की वस्तुओं का आयात नहीं कर पा रहा है। इस स्थिति के कारण श्री लंका अनाज एवं पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की गंभीर कमी का सामना कर रहा है। वहाँ के पेट्रोल पंपों में लंबी-लंबी लाइनें लगी हैं। घर में खाना बनाने के एलपीजी गैस की कमी हो चुकी है,अब लोग लकड़ी का प्रयोग खाना बनाने में कर रहे है। यही स्थिति बिजली तथा अन्य जरूरत के सामानों की है।
श्रीलंका में यह संकट अचानक नहीं आया बल्कि यह काफी लंबे समय से गलत आर्थिक नीति का परिणाम है। श्रीलंका के कई बड़े निवेश प्रोजेक्ट चीन के द्वारा दिए गए ऋण से किये गए, परन्तु उस प्रोजेक्ट से उनकी कोई आय नहीं बढ़ी और वह चीन के ऋण जाल में फंसता गया। उस ऋण के व्याज का भुगतान उसके सीमित विदेशी मुद्रा से होने लगा।
2020 के कोविड संकट से वहाँ के टूरिज्म इंडस्ट्री को काफी धक्का पहुंचा, जिसके कारण उसके विदेशी मुद्रा भंडार में काफी कमी आई। साथ ही साथ 2014-15 में शुरू की गई जैविक खेती, जिसमें रासायनिक खादों का प्रयोग बंद कर दिया गया, जिससे अनाजों के उत्पादन में काफी कमी आई और खाद्य पदार्थो के लिए आयात पर निर्भरता बढ़ गयी।
इन्ही कारणों की वजह से वहां पर वर्तमान में विदेशी मुद्रा भंडार काफी कम हो गया और पेमेंट सप्लाई की समस्या उत्पन्न हुई, और वह पेट्रोलियम गुड्स के साथ अनाज के आयात करने में असमर्थ हो गया और इन वस्तुओं की भारी कमी हो गयी।
श्रीलंका की यह स्थिति विश्व में कोई नई नहीं है, बल्कि कई देश पहले भी गलत आर्थिक नीतियों के कारण इस स्थिति का सामना कर चुके है। भारत भी 1990 में इस स्थिति का सामना कर चुका है। वर्तमान में कई देश अभी भी इस तरह की स्थिति का सामना कर रहे है। फिलहाल नेपाल ने भुगतान संकट के कारण गैर जरूरी आयात को कम किया है।
कोविड-19 के कारण अमेरिका अपने अप्रत्याशित खर्च को पाटने के लिए अत्यधिक मात्रा में डॉलर की प्रिंटिंग की और उसे खुले बाजार में डाल दिया, जिससे वैश्विक महंगाई उत्पन्न हुई, क्योंकि अमेरिकी डॉलर अघोषित रूप से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में कार्य करता है। इस महंगाई के आग में घी डालने का काम रसिया यूक्रेन वार ने किया।
महंगाई के कारण जो देश आयात पर अधिक निर्भर है और जिसकी आय कम है, उनकी आर्थिक संकट गहराता जा रहा है।
यह आर्थिक संकट कई देशों में दिख रहा है। अगर स्थिति ठीक नहीं हुई तो श्रीलंका जैसी स्थिति और कई देशों में भी हो सकती है। लेकिन क्या भारत में भी ऐसी स्थितियां हो सकती है?
इसे समझने के लिए हमें भारत की भुगतान संतुलन को समझना होगा।
भारत में गुड्स का आयात, निर्यात से अधिक है और इस trade deficit के कारण जितनी विदेशी मुद्रा भारत आती है,उससे ज्यादा बाहर जाती है। फिर भी भारत में भुगतान संकट संकट नहीं है।
इसका सबसे बड़ा कारण है वो भारतीय जो भारत से बाहर रहते है और वहाँ से बड़ी मात्रा में रेमिटेंस भारत भेजते हैं। इसके अलावा FDI एवं FII के रूप में एक बड़ी मात्रा में धन हर साल भारत में आ रहा है।
विदेशी मुद्रा (डॉलर) भारत लाने में टूरिज्म और सर्विस का एक्सपोर्ट भी एक बड़ी भूमिका निभाता है जिसके कारण हम लोगों का भुगतान संकट 1990 के बाद कभी पैदा नहीं हुआ एवं लगातार डॉलर रिजर्व बढ़ता जा रहा है।
वर्तमान में की स्थिति की बात करें तो भारत में भी महंगाई बढ़ती जा रही है। महंगाई का सबसे बड़ा कारण अंतरास्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों एवं खाद्य तेलों का कीमत बढ़ना है।
रूस - यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन से गेहूं एवं सूर्यमुखी के तेल की सप्लाई बंद हो गयी। चूंकि भारत खाद्य तेल का net importer है, इसलिए यहाँ खाद्य तेल की कीमत काफी बढ़ गयी। साथ ही वैश्विक बाजार में गेहूं की सप्लाई भारत से होने के कारण भारत में आटे की कीमत में 15% की वृद्धि हुई है। इस सभी कारणों के कारण भारत में महंगाई अपने रिकॉर्ड स्तर पर है, लेकिन 75% परिवारों को खाद्य सुरक्षा में काफी कम कीमत पर खाद्य सामग्री देने के कारण महंगाई की मार से आम जनता को थोड़ी राहत है।
इन सभी स्थितियों के बावजूद भी भारत में भुगतान संकट या फॉरेन रिजर्व में कमी जैसी स्थिति नहीं दिखती है। भारत के पास जितना रिजर्व है उससे इस तरह के कई संकटों का सामना कई सालों तक वह आसानी से कर सकता है। साथ ही भारत GDP विकास दर भी विश्व में सबसे अधिक है। हाँ महंगाई के कारण जनता पर बोझ बढ़ा है लेकिन जब विश्व में परिचालित डॉलर के अनुपात में वैश्विक GDP समान हो जाएगी तब ही महंगाई कम हो पाएगी।
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