9/11 की घटना के 20 साल हो चुके है। इस घटना के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में अल कायदा और तालिबान पर हमला शुरू किया, तब कुछ लोग यह कहते थे कि जिस तरह रूस को हार का सामना करना पड़ा उस तरह अमेरिका को भी हार मिलेगी, अफगानिस्तान को कोई गुलाम नहीं बना पाया है।
आज जब अमेरिका अफगानिस्तान छोड़ कर चला गया, तब भी लोग यही कह रहे है।
वास्तविकता देखी जाय तो इस नरेटिव के काफी उलट है। अमेरिका कभी वहाँ कब्जा करने के उद्देश्य से नहीं आया था, उसे अलकायदा और उसके सहयोगियों से बदला लेना था, जो उसने ले लिया। हालांकि उसने कोशिश की एक उदारवादी लोकतंत्र बनाने की अफगानिस्तान में, जिसमें वे सफल नहीं रहे।
औपनिवेशिक युग से दुनिया काफी आगे निकल चुकी है। अब किसी देश में कब्जा करके कोई देश अमीर नहीं बन सकता है, अगर उस देश में बहुमूल्य संसाधन ना हो। अफगानिस्तान में ना ही कोई तेल भंडार है और ना ही अन्य कोई संसाधन और ना ही कौशल युक्त मानव संसाधन, किसी देश को उसे कब्जा करने में कोई लाभ नही है। अब वैसे भी 20% उत्पादन क्षमता के साथ अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है, और तेल का net exporter है। तेल वाली कहानी, जिसमें यह कहा जाता रहा है कि अमेरिका तेल के कारण पश्चिमी एशिया में लड़ाई झगड़े करवाता है, बेमानी हो चुकी है। वैसे भी अब clean Energy का समय है।
वैसे भी अमेरिका को पैसे के लिए किसी देश में कब्जे या हथियार बेचने के लिए लड़ाई झगड़े करवाने की जरूरत नही है। अमेरिका के FAANG (Facebook, Apple, Amazon, Netflix, Google) जैसी कंपनियां पूरे विश्व से पैसा लाकर अमेरीका को और अमीर बनाती जा रही है।
अब रह गई अफगानिस्तान की बात तो इतिहास के बहुत कम समय में ही अफगानियों का अफगानिस्तान में हुकूमत रही, यूनानी, ईरानी, तुर्क, तेमुरिद, मंगोल, अरबी, सिख आदि ने लंबे समय तक अफगानिस्तान में राज किया, अफगानियों की एक मात्र सफलता भारत में रही, जहाँ कुछ समय तक राज किया, लेकिन तेमुरिद-मुगल के आ जाने से वो सत्ता से दूर चले गए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें