क्यों करते है इस पूजा को जानने से पहले यह जानते है क्या होता है इस पूजा में। वट सावित्री की पूजा हिन्दू मास ज्येष्ठ माह के अमावस्या के दिन मनाया जाता है, जबकि दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में इसी ज्येष्ठ माह के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन वट वृक्ष का पूजन कर सावित्री-सत्यवान की कथा को याद किया जाता है।
शादीशुदा महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर, स्नान आदि कर स्वच्छ हो कर लाल या पीले वस्त्र धारण कर विभिन्न पूजा सामग्री से वट वृक्ष की पूजा करती है, तथा जल चढ़ाती है, फिर इसके बाद वट वृक्ष के तने के चारों कच्चा धागा लपेट कर तीन या सात बार वृक्ष की परिक्रमा करती है।
हिन्दू मन्यताओ में वट वृक्ष को पूजनीय माना जाता है एवं इसमे देवी - देवताओ का वास माना जाता है। इसलिए वट वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है ऐसा माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इस दिन सावित्री अपने मृत पति को जीवित करवाने के लिए यमराज से याचना की थी, जिससे प्रसन्न होकर यमराज ने उसके पति सत्यवानके प्राण लौटा दिए थे।
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा
भद्र देश के राजा अश्वपति को संतान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करने के पश्चात एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम सावित्री रखा गया। सावित्री के युवा होने पर उसके लिए वर तलाशने लगे। लेकिन काफी खोजने पर भी नहीं मिलने की वजह से सावित्री के पिता ने उन्हे स्वयं वर तलाशने के लिए कहा।
जब सावित्री तपोवन में विचरण कर रही थी,तब उस समय वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे, क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने उसे पति के रूप में उनका वरण कर लिया।
जब ऋषि नारद हो या पता चला तो उसने राजा अश्वपति को बताया सत्यवान जरूर विवेकशील, बलवान एवं योग्य है, परंतु उसकी आयु छोटी है, शादी के कुछ समय बाद उनकी मृत्यु हो जाएगी।
नारद की यह बात सुनकर राजा अश्वपति चिंतित हो गए, जब सावित्री ने उनसे चिंता का कारण पूछा तो उसने बताया कि तुमने जिसे पति के रूप में चुना है, वह अल्पायु है, इसलिए तुम्हें किसी दूसरे से शादी करनी चाहिए। इस पर सावित्री ने कहा कि वह सत्यवान को अपने पति के रूप में वरण कर चुकी है एवं हठ करने लगी और कहीं कि मैं सत्यवान से ही विवाह करूंगी। सावित्री के हठ के कारण राजा ने सावित्री का विवाह सत्यवान से कर दिया।
शादी के बाद सावित्री अपने ससुराल आ गई और उसने नारद मुनि के कहे अनुसार अपने पति की आयु के लिए पूजन एवं उपवास करने लगी।
हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन लकड़ी काटने जंगल गया था एवं साथ में सावित्री भी गई थी। जंगल में पहुंच कर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ा एवं तभी ही उसके सर पर तेज दर्द होने लगा। दर्द से जब से व्याकुल होकर सत्यवान पेड़ से नीचे उतर गया, उसी समय सावित्री समझ चुकी थी कि वह समय अब आ गया है। वह उसके सर को गोद में रखकर उसका सर सहलाने लगी।
जब यमराज सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगा तो सावित्री भी उसके पीछे पीछे चल पड़ी। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की, और कहा कि यह विधि का विधान है लेकिन सावित्री नहीं मानी।
सावित्री की निष्ठा एवं पति परायणता को देखकर यमराज ने उससे वर मांगने को कहा। सावित्री ने सबसे पहले अपने अंधे सास ससुर के लिए ज्योति मांगी। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा, जाओ अब लौट जाओ। परंतु सावित्री पुनः अपने पति सत्यवान के पीछे पीछे चलती रही, यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ, परंतु सावित्री ने कहा भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है, पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है। यह सुनकर यमराज ने उसे एक और वर मांगने को कहा।
सावित्री बोली कि हमारे ससुर का राज्य छीन गया है आप उसे दिला दे। यमराज ने यह वरदान भी उसे दे दिया और सावित्री को रुकने के लिए कहा परंतु सावित्री पीछे पीछे चलती रही। इसके बाद यमराज ने पुनः सावित्री से एक और वर मांगने को कहा, तब सावित्री ने 100 संतान एवं सौभाग्य का वर मांगा और यमराज ने यह वरदान भी सावित्री को दे दिया।
इसके बा यमराज उसके पति की को लेकर जाने लगे एवं जब यमराज ने पुनः पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि सावित्री भी पीछे आ रही थी। तो यमराज ने कहा मैंने सभी वर तुम्हें दे चुका हूं अब आप वापस चले जाओ। तब सावित्री ने कहा प्रभु मैं एक पतिव्रता पत्नी हूँ और आपने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया है अतः मुझे मेरा पति लौटा दिया जाए। यमराज इसके बाद निरुत्तर हो गए, एवं सावित्री की पतिव्रता से प्रसन्न प्रश्न होकर सत्यवान को छोड़कर अंतर्धान हो गए। इसके बाद सावित्री उस पेड़ के पास जाती है और देखती है की उसके पति को होश आ चुका है। जब वह अपनी पति के साथ घर जाती है तो पाती है कि उसके सास ससुर की दृष्टि वापस या चुकी है।
----------------------------
इसे भी पढे :-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें