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India and Nepal relationship
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भारत और नेपाल के बिगड़ते संबंध : किसको कितना नुकसान है?
The deteriorating relationship between India and Nepal: Who will suffered much?
भारत और नेपाल के बीच का संबंध, नेपाल द्वारा नए मैप का संविधान संशोधन विधेयक, हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव से पास कराए जाने से, अब तक का सबसे निचले स्तर पर चला गया। पिछले 10 सालों से भारत और नेपाल के संबंध खराब होते रहे हैं लेकिन पिछले 5 सालों में यह काफी ज्यादा खराब हुआ हैं, ऐसा क्यों हुआ है, यह देखने से पहले भारत - नेपाल के इतिहास को समझते है।
भारत और नेपाल की साझी विरासत रही है। दोनों की धार्मिक, सांस्कृतिक, भाषाई इतिहास के एक जैसा रहा है भारत और नेपाल के बीच रोटी - बेटी का संबंध रहा है। भारतीय सेना में गोरखा रेजीमेंट भी है।
भारत और नेपाल के बीच में शांति व मैत्री की संधि 1950, जिससे नेपाली नागरिकों को भारत में, भारत के नागरिकों की तरह की सुविधा और अवसर प्राप्त हुए। नेपाली नागरिक भारत में जमीन खरीद सकते हैं, यहां तक कि सरकारी नौकरी भी कर सकते हैं। करीब करीब 60 लाख नेपाली भारत में रहते हैं, लेकिन इस संधि से केवल नेपाल को ही सबसे ज्यादा फायदा है, किसी भी भारतीय नागरिकों को नेपाल में वो लाभ प्राप्त नहीं है जैसा नेपाली नागरिकों को भारत में लाभ प्राप्त है।
जब 2015 में नेपाल में भूकंप आया था तब भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए भारत से राहत सामग्री एवं NDRF के जवान सहायता के लिए भेजे थे। इसी तरह भारत हर समय नेपाल की सहायता करता रहा है।
भारत और नेपाल के हाल के समय के संबंध को देखे, तो नेपाली सिविल वार के समाप्त होने के बाद से संबंध धीरे धीरे खराब होते गए।। 1996 से लेकर 2006 तक नेपाल में गृह युद्ध (civil war) चला जिसमें माओवादियों की जीत हासिल हुई और 2008 में राजशाही समाप्त हुई, उसके बाद से नेपाल में माओवादी विचारधारा का प्रभाव बढ़ने लगा, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के पुष्प कमल दहल प्रचंड वहां के प्रधानमंत्री बने और उसने नेपाल की पुरानी परंपराओं को तोड़ते हुए सबसे पहले चीन की यात्रा की उसके बाद वह भारत की यात्रा पर आए।
भारत और नेपाल के बीच में सबसे बड़ा तनाव माओवादियों के बाद से शुरू हुआ लेकिन इसमें सबसे बड़ा Turning Point 2015 में मधेशियो का विरोध रहा। मधेशी, वहां के तराई क्षेत्र में रहने वाले रहने वाले हैं, जब 2015 में नया संविधान बना तो वहां पर संविधान में इस तरह की व्यवस्था की गई की गई कि थारू, मधेशी और जनजाति लोगों को नेपाली संसद में आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व कम मिला और नेपाली (पहाड़ी) लोगों को अधिक मिला जिसके चलते मधेशियो ने 2015 में भारत नेपाल सीमा पर रोड ब्लॉक किया, जिससे भारत से नेपाल जाने वाले समान की supply बंद हो गई और नेपाल ने भारत पर आरोप लगाया कि आंदोलन भारत समर्थित है।
2008 के बाद से ही नेपाल का झुकाव चीन की तरफ बढ़ने लगा क्योंकि चीन में भी Communist Party of China का ही शासन है। धीरे धीरे नेपाल चीन की हर पॉलिसी का समर्थन करने लगा, One China Policy, Belt Road Initiative, हांगकांग में लोगों के आंदोलन का विरोध, इन सभी का नेपाल खुल कर चीन का समर्थन करने लगा।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के साथ नेपाल की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की साल में दो बार मीटिंग होने लगी है, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी की का एजेंडा तय करने लगी है एवं नेपाल की सरकार भी उसी एजेंडे में चलने लगी है। जब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों में मतभेद हुआ तो नेपाल में स्थित चीनी ambassador ने मध्यस्थता कर इन मतभेदों को सुलझाया। 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग नेपाल गए और बहुत सारी बिजनेस डील इस प्रकार की हुई, कि भारत पर नेपाल की निर्भरता कम की जा सके।
अब वर्तमान मुद्दे पर आते हैं, उत्तराखंड राज्य में भारत चीन और नेपाल के ट्राई जंक्शन पर स्थित लिपुलेख दर्रा के पास काला पानी स्थित क्षेत्र क्षेत्र सन 1816 के सुगौली के संधि से ही भारत का हिस्सा रहा है और भारत के मानचित्र में प्रदर्शित होता रहा है जिस पर नेपाल अपना हक जताता रहा है और इस मुद्दे पर भारत और नेपाल के बीच बातचीत होती आ रही है लेकिन अचानक से नेपाल द्वारा अपने नक्शे को बदल कर अपने नए मानचित्र में इस क्षेत्र को दिखाना, शांतिपूर्ण समाधान के खिलाफ है।
इसके अलावा भारत और नेपाल का संबंध इस स्तर पर पहुंचाने का बड़ा श्रेय नेपाल के प्रधानमंत्री K P Oli को भी जाता है जो भारत के प्रति शुरू से ही आक्रामक रहे हैं।
इसके अलावा भारत और नेपाल का संबंध इस स्तर पर पहुंचाने का बड़ा श्रेय नेपाल के प्रधानमंत्री K P Oli को भी जाता है जो भारत के प्रति शुरू से ही आक्रामक रहे हैं।
अब आते हैं इसके तीसरे भाग पर कि नेपाल को क्या फायदा होगा इससे और भारत को कितना नुकसान होगा?
अगर हम नेपाल की फायदे की बात करें तो सबसे पहले वामपंथी या कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था को देखना होगा दुनिया में ऐसा कोई भी उदाहरण नहीं है जहां पर कम्युनिस्ट शासन से लोगों को फायदा पहुंचा हो वर्तमान चीन में लोगों को
कई प्रकार की आज़ादी प्राप्त नही है जो भारत या पश्चिमी देशों के लोगों को प्राप्त है वामपंथी या कम्युनिस्ट शासन में केवल शासकों को ही फायदा होता है और जनता त्रस्त ही रहती है नेपाल पर चीन के बढ़ते प्रभाव से नेपाल के नेताओं को तो काफी फायदा पहुंचेगा लेकिन नेपाल के लोगों को नुकसान ही होगा। जिस तरह से चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी का प्रभाव नेपाल में बढ़ रहा है, वह दिन दूर नहीं जब नेपाल में केवल एक कम्यूनिस्ट पार्टी का शासन हो जाएगा और लोकतन्त्र केवल दिखावे के लिए रह जाएगा।
भारत और नेपाल के संबंधों की बात की जाए तो भारत को इससे फायदा कम है नेपाल को ही ज्यादा फायदा रहा है अगर भारत और नेपाल के संबंध और खराब होते हैं तो भारत नेपाल को दिए गए विशेष सुविधाओं को वापस ले सकता है लेकिन इस नुकसान की भरपाई चीन नहीं कर सकता है। जिस तरह भारत में नेपाली नागरिक बिना किसी भेदभाव के रहते है, क्या उसी प्रकार से चीन मेँ रह पाएंगे । जिस तरह का भारतीय नागरिक और नेपाली नागरिक के बीच का संबंध है, क्या उसी प्रकार का संबंध नेपाली और चीनी के बीच हो पाएगा ?
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इससे यह तो साफ है कि संबंध ज्यादा खराब होने पर नेपाल को खास कर नेपाली लोगो को ही ज्यादा नुकसान होना है।
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