हम सभी यह जानते है कि यह भाई - बहन का त्यौहार है, जहां बहन, भाई के हाथ में राखी बांधती है, और भाई उसकी रक्षा
करने वचन देता है। पर क्या इतिहास है इसका?
रक्षाबंधन श्रावण महीने के पुर्णिमा के दिन मनाया
जाता है। इसके बारे में यह कहा जाता रहा है कि मुगलकाल से यह प्रचलन आया है, यह न केवल भ्रामक है, बल्कि इतिहास तो तोड़ मरोड़ कर
प्रस्तुत करने जैसा है।
हिन्दू धर्म के कोई भी अनुष्ठान होते है, उसमे रक्षा सूत्र बाँधा जाता है, जो साधारण धागा होता है। इसे बांधते समय कर्मकांड करने वाले पंडित एक श्लोक का उच्चारण करते
है, इस श्लोक का संबंध राजा बलि से है।
भविष्य पुराण के अनुसार देवगुरु वृहस्पति ने इंद्र
के हाथ में रक्षा सूत्र बांधते हुए निम्न श्लोक का वाचन किया :-
येन बद्धों बलीरजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वमापि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।
इस श्लोक का हिन्दी अर्थ है :
“जिस रक्षा सूत्र से
महान शक्तिशाली राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं
तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे( राखी) ! तुम अडिग रहना”।
जिस दिन रक्षा सूत्र बांधा गया, वह दिन श्रावणी पुर्णिमा था और देव- दानव युद्ध में देवो की विजय हुई।
रक्षा सूत्र के कारण विजय होने की धारणा के कारण उसी दिन से यह प्रथा चली आ रही
है।
इतिहास में द्रौपदी और श्री कृष्ण की कहानी भी
प्रसिद्ध है। शिशुपाल वध के समय जब श्रीकृष्ण की उंगली चोटिल हो जाती है, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा उसकी उंगली में बांध दी थी, इस उपकार के बदले, श्री कृष्ण ने उसे आजीवन रक्षा
करने का वचन दिया था, जिसे श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय
द्रौपदी की साड़ी बढ़ा कर उसकी रक्षा की थी।
इसके अलावा इस त्यौहार से संबन्धित राजा बलि, यमराज और यमुना की कहानी प्रसिद्ध है। महाभारत के कई सारे प्रसंगो में
रक्षा बंधन जैसे पर्व का उल्लेख है।
यह ब्राह्मणो का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है, ब्राह्मण पुराने जनेऊ (यज्ञोपवीत) का त्याग कर नए जनेऊ धारण करते है, तथा पुरोहित अपने यजमानो को धागा बांधते है, उनकी
सुख शांति एवं बाधा रहित जीवन की प्रार्थना करते है और बदले में दान प्राप्त करते
है।
हिन्दुवों के अलावा जैन धर्म में भी रक्षाबंधन
मनाया जाता है। जैन साहित्य के अनुसार इसी दिन विष्णुकुमार नामक मुनिराज ने 700
जैन मुनियो की रक्षा की थी। उसके बाद से जैन भी इस त्यौहार मनाने लगे और विश्वशांति की प्रार्थना
करते है।
इसके ऐतिहासिक प्रसंगो की बात की जाय तो जब भी
राजस्थान के आस पास के योद्धा युद्ध के लिए जाते थे, तब महिलाए
उनके माथे पर कुमकुम, तिलक लगाने के साथ हाथ मे रेशमी धागा
बांधती थी और विजयी होकर लौटने की प्रार्थना करती थी।
समय के साथ साथ रक्षाबंधन त्यौहार मनाने के नियमो में परिवर्तन होने लगे।
धार्मिक त्यौहार धीरे धीरे सामाजिक एवं सांस्कृतिक त्यौहार में बदलने लगा। इसे हर
धर्म समप्रदाय के लोग मनाने लगे। जिससे स्वरूप काफी बदला है। सबसे महत्वपूर्ण
बदलाव, इस पर्व का भावनात्मक होना रहा है, जिसके चलते भी
इसका प्रसार सभी वर्गो में हुआ और अन्य सभी धर्मो में इसकी स्वीकार्यता बढ़ी।
एक धार्मिक त्यौहार का भावनात्मक बदलाव ने इस त्यौहार
पर काफी प्रभाव डाला और इसकी लोकप्रियता काफी बढ़ गयी। धीरे- धीरे इसमे स्त्री
पुरुष का भेद आने लगा। वर्तमान स्वरूप में महिला अपने भाई को राखी बांधती है, और भाई उसे हर समय मदद का वचन देता है। यहाँ राखी बांधने वाला और बँधवाने
वाला में स्पष्ट रूप से लिंग (gender) का निर्धारण है।
इस भावनात्मक बदलाव का सबसे बड़ा कारण काल रहा।
मध्यकाल में स्त्रियो की सामाजिक स्थिति निम्नतर होती गयी और सुरक्षा एवं अन्य
जरूरी साधनो के लिए पुरुष पर निर्भरता बढ़ती गयी। जिससे इस त्यौहार का स्वरूप बदल
गया।
आधुनिक काल में भी यही स्थिति बनी रही। मीडिया, फिल्मी गानो ने इस भावना को और बढ़ाया, जिससे यह
स्थिति स्थापित हो गयी, कि रक्षाबंधन का अर्थ है कि बहन, भाई को राखी बांधेगी और भाई उसकी रक्षा करने का वचन देगा।
वर्तमान समय में जहां महिलाए हर क्षेत्र में पुरुषो
से कदम से कदम मिला कर चल रही है, अब यह स्थिति है कि बहन भी
भाई की हर तरह से रक्षा कर सकती है। लेकिन इस त्यौहार को तर्क के आधार पर ना देख
कर इसकी भावना के आधार पर देखना चाहिए। यह पर्व भाई- बहन के प्यार को और बढ़ाता है, साथ ही साथ सांप्रदायिक सौहार्द को भी स्थापित करता है। यह पर्व सभी के चेहरो
में खुशिया लाता है। हम सब इसका साल भर काफी वेसब्री से इंतजार करते है।
सभी को रक्षा बंधन की शुभकमनाए।